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Paniyala fruit:शरीर के लिए अमृत के समान है पनियाला फल,पाचन के लिए फायदेमंद,जानिए पनियाला फल के फायदे

यह पित्ताशय की समस्याओं में भी सुधार करता है। भारत में इस फल को पवित्र माना जाता है। पनियाला इसलिए भी एक विशेष फल है क्योंकि यह आंवला प्रजाति का है।

Paniyala fruit:पनियाला फल का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है, लेकिन अब इसकी उत्पत्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जामुन जैसा यह गोल फल पाचन के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है।

यह पित्ताशय की समस्याओं में भी सुधार करता है। भारत में इस फल को पवित्र माना जाता है। पनियाला इसलिए भी एक विशेष फल है क्योंकि यह आंवला प्रजाति का है।

आकार में यह बेरी जैसा दिखता है, लेकिन बिल्कुल गोल होता है।जामुन में गुठलियाँ होती हैं, लेकिन खट्टे-मीठे पनियाला के अंदर कुछ बीज होते हैं, जिन्हें चबाया जा सकता है।

जिन लोगों ने इसका स्वाद चखा है, उनका कहना है कि यह मुंह में पानी ला देता है, शायद इसीलिए इसका नाम पनियाला पड़ा। इस फल को इसलिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि कुछ साल पहले तक छठ पर्व के प्रसाद में इसकी मौजूदगी जरूरी मानी जाती थी।

लेकिन अब पनियाला के पेड़ लगातार कम होते जा रहे हैं।आज भी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का पनियाला सबसे स्वादिष्ट माना जाता है। पनियाला फल की उत्पत्ति भारत और आसपास के क्षेत्रों में मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इसकी कई प्रजातियाँ हैं, इसलिए यह दक्षिण पूर्व एशिया, ओशिनिया और मलेशिया में भी पाया जाता है। यह अब उत्तर और दक्षिण अमेरिका, फ्लोरिडा और चीन तक पहुंच गया है।

पनियाला का उल्लेख भारत के पुराणों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलता है। लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व के आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरक संहिता’ के अनुसार यह गर्म है और वात और कफ के अलावा पित्त को भी नष्ट करता है।

देश के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने अपनी पुस्तक ‘फ्रूट्स’ में पनियाला की उत्पत्ति भारत में बताई है।यह फल पहले हिमालय क्षेत्र और दक्षिण भारत में पाया जाता था, लेकिन अब केवल देश के कुछ हिस्सों में ही पाया जाता है।

यूपी राज्य जैव विविधता बोर्ड के अनुसार, पनियाला की खेती दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में व्यापक रूप से की जाती है, लेकिन कई स्थानों पर इसकी खेती की जा रही है।

उत्तर प्रदेश में यह वृक्ष मुख्यत गोरखपुर जिले में पाया जाता है। सूखे पत्तों का उपयोग अस्थमा के इलाज के लिए किया जाता है और पत्तियों के काढ़े का उपयोग दस्त और पेचिश के इलाज मे किया जाता है।

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