Delhi High Court:दिल्ली हाई कोर्ट ने महिलाओं के हक में सुनाया बड़ा फैसला, महिलाओं को पढ़ने या बच्चे पैदा करने के एक विकल्प चुनने को लेकर नहीं कर सकते मजबूर

दिल्ली हाई कोर्ट ने महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी महिला को पढ़ने या बच्चे पैदा करने में से किसी एक विकल्प को चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

Delhi High Court:दिल्ली हाई कोर्ट ने महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी महिला को पढ़ने या बच्चे पैदा करने में से किसी एक विकल्प को चुनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

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इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मास्टर ऑफ एजुकेशन की एक छात्रा को मातृत्व अवकाश का लाभ देने का भी निर्देश दिया। आवश्यक उपस्थिति पूरी होने पर परीक्षा में बैठने की अनुमति। महिलाओं के अधिकारों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है।

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अदालत ने माना है कि महिलाओं को शिक्षा के अधिकार और मां बनने के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। दो वर्षीय मास्टर ऑफ एजुकेशन (MA ) की पढ़ाई कर रही महिला को राहत देते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की।

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इस बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता महिला को मातृत्व अवकाश के आधार पर मास्टर ऑफ एजुकेशन कक्षाओं में भाग लेने से छूट देने से इनकार कर दिया था।न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौर ने विश्वविद्यालय प्रबंधन के 28 फरवरी 2023 के आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता महिला को 59 दिन के मातृत्व अवकाश का लाभ देने का निर्देश जारी किया।

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इस आदेश के जरिए विश्वविद्यालय के डीन ने कम क्लास अटेंडेंस की भरपाई के लिए महिला को मैटरनिटी लीव के लाभ से वंचित कर दिया था. न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौर ने हाल ही में एक मास्टर ऑफ एजुकेशन छात्र की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान एक समतावादी समाज की परिकल्पना करता है जिसमें नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकें।

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समाज के साथ-साथ राज्य भी उन्हें ऐसा करने की अनुमति देता है। न्यायालय ने आगे कहा कि संवैधानिक आदेश के अनुसार, किसी को शिक्षा के अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार के बीच चयन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि एक महिला को शिक्षा और प्रजनन के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। विश्वविद्यालय प्रबंधन ने याचिकाकर्ता महिला को क्लास अटेंडेंस के मानक को पूरा करने के लिए मैटरनिटी लीव (मातृत्व अवकाश) का लाभ देने से इनकार कर दिया था.

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इसके बाद महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला की ओर से अधिवक्ता भावांशु शर्मा ने उच्च न्यायालय से यूजीसी को स्नातक और परा स्नातक पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत महिलाओं को मातृत्व अवकाश का लाभ देने के लिए उचित नीति और नियम बनाने का आदेश देने का आदेश देने की मांग की थी.अदालत ने विभिन्न निर्णयों में यह भी कहा कि कार्यस्थल पर मातृत्व अवकाश का लाभ लेना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।

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